अध्यात्म की सार्थकता – दिव्तीय भाग …

प्रिय मित्रो, मैंने अपनी पिछली पोस्ट इसलिए दी थी की बहुत से ऐसे साधक है जो इस क्षेत्र में आगे तो बढ़ना चाहते है … पर जूनून नहीं है..उनका साधना कि नीव तक नही बनी और जो अभी आध्यात्म के क्षेत्र में नए है, जिज्ञासु है ,वे इस साधना /तंत्र मार्ग पर आगे तो बढ़ना चाहते है ……..पर उन्हें निश्चित कुछ भी ज्ञात नहीं की कहाँ से प्रारंभ किया जाए …………..
अब तक हम यह समझ ही गए है की साधना के क्षेत्र में सद्गुरु ही क्या महत्ता है ……….. और हमें यह भी ज्ञात हो ही गया है की समस्त साधनाओं का सार सद्गुरु ही है, बिना सद्गुरु के इस मार्ग में सफलता एवं पूर्णता प्राप्त हो ही नहीं सकती …………….
अपनी पिछली पोस्ट में मैंने नए साधको के लिए प्रारंभिक संकेत भी दिया था… की वे शिव को ही अपना गुरु मान कर उनसे यह प्रार्थना करे की उन्हें सद्गुरु की प्राप्ति हो सके ,यह इसलिए महत्वपूर्ण है की शिव ही प्रेम वश शिष्य का कल्याण करने के लिए सद्गुरु रूप धारण करते है ………इसमें आपको जरा सा भी संदेह नहीं होना चाहिए ……………..
क्योंकि जो शिव और सद्गुरु को पृथक समझता है वो आध्यात्म के मार्ग में कुछ ही दूर चलने के बाद भटक जाता है ,माया के जाल में उलझ के रह जाता है …………….
तो क्या हम जीवन भर शिव को ही सद्गुरु मान के साधना करते रहे????????? मित्रो इस प्रश्न को हमें बहुत सूक्ष्मता से समझने की जरुरत है …..अगर हम यह कहते हैं की जब शिव ही गुरु है और गुरु ही शिव है तो क्या हम जीवन भर शिव को ही अपना सद्गुरु मान के साधना कर सकते है ????????? मित्रो यह तब तक ठीक है की जब तक भगवान् शिव आपके हृदय की पुकार सुन कर स्वयं सद्गुरु रूप में नहीं आते …………..
क्योंकि साधना के मार्ग में पूर्णता प्राप्त करने के लिए आपको पल प्रतिपल सद्गुरु के सानिध्य एवं उनके मार्गदर्शन की नितान्त आवश्यकता पड़ेगी ………………
इसीलिए जीवित सद्गुरु की इतनी महत्ता है ,क्योंकि जीवित सद्गुरु की पैनी दृष्टी प्रत्येक छन आपके ऊपर रहेगी और आपकी एक भी गलती पे वो आपके ऊपर प्रहार भी करेंगे ताकि आप पूर्ण बन सके ………इसलिए जीवित सद्गुरु के साथ चलना तलवार के धार पे चलने के समान है ……….
इसलिए जितने भी सिद्ध ,ऋषि ,महात्मा हुए है, उन्होंने साधना मार्ग में आगे बढ़ने के लिए सबसे पहले सद्गुरु की तलाश की है, क्योंकि ये मार्ग क्रियात्मक है ,सिर्फ पुस्तको को पढ़ कर इस मार्ग में आगे बढ़ने से आपको सफलता नहीं मिल सकती …………….
फिर चाहे वो भगवान के अवतार राम हो या कृष्ण, उन्हें भी पूर्ण बनने के लिए सद्गुरु के शरण में जाना ही पड़ा ………क्योंकि भगवान कृष्ण ने अपने बाल काल में ही कंस के द्वारा भेजे गए कई राक्षसों का वध कर दिया था ….. इतनी छमता होते हुए भी वे पूर्णता प्राप्त करने के लिए संदीपनी के आश्रम में गए और उन्हें अपना सद्गुरु बनाया …..क्योंकि उन्हें पता था की अगर मुझे पुरे विश्व में कोई अद्वितीय बना सकता है तो वो सिर्फ सद्गुरु ही है …………. और राजा के पुत्र होते हुए भी कृष्ण एक आम शिष्य की तरह उनके आश्रम में सभी कार्यो को करते,जंगल से लकडियां काट के लाते …….क्योंकि सद्गुरु को प्रेम से ही जीता जा सकता है ……….जो सारे ब्रह्माण्ड हो देते है उन्हें भला आप दे भी क्या सकते है ????????
इसलिए प्रेम के द्वारा ही सद्गुरु की कृपा प्राप्त की जा सकती है ,समर्पण के द्वारा ही उनकी कृपा प्राप्त की जा सकती है ,आपने आप को न्योछावर कर ही उनकी कृपा प्राप्त की जा सकती है ……………….यह तो एक ऐसा मार्ग है जहाँ आपने को लुटा के ही सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है …………
मित्रो, प्रथम बार मैंने शिव को ही अपना गुरु माना था और उनसे यही प्रार्थना की थी की मुझे जीवन में सद्गुरु रूप में आप प्राप्त हो ………..
और ये शिव की कृपा ही है की प्रथम बार जिनके प्रति मेरा मस्तक पूर्ण रूप से श्रद्धा से झुका था,प्रथम बार मेरे दिल से ये आवाज आई की , तुम जिसे वर्षो से ढूंड रहे हो, वे सदगुरुदेव निखिलेश्वरानंद ही है ………. और तब से लेकर आज तक मैं उनको शिव मानते हुए उनकी सद्गुरु रूप में पूजा कर रहा हूँ ………..
क्रमशः
II जय निखिलेश्वर II
Hi
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