अध्यात्म की सार्थकता – प्रथम भाग
प्रिय मित्रो,
मैं आज आपसे अपने दिल की बात कहना चाहता हूँ ………अध्यात्म का मार्ग एक ऐसा मार्ग है जिसमे साधक काफी जोश के साथ जुड़ते तो हैं पर अधिकतर साधक सिद्धि,अहंकार,माया, के चक्कर में भटक कर रह जाते हैं।
यह एक ऐसा मार्ग है जिसमे एक साधक को द्रष्टा भाव रख कर आगे बढ़ना चाहिए …….एक द्रष्टा की तरह अलग खड़े होकर अपने अन्दर के अहंकार , कुविचार ,काम …..आदि प्रवृतियों को देखना चाहिए ……जिससे की यह प्रवृति साधक पे हावी न हो जाए …..
आज के अधिकतर साधक इसी वजह से भटक रहे हैं ……….वे चमत्कार के पीछे भागते हैं …….उनके मानस में यह रहता है की कैसे अपने को महान बताऊँ ……….और यह प्रवृति उनके अन्दर अहंकार को जन्म देती है ……..अगर आज सही अर्थो में देखें तो आपको लाखो में एक ही साधक मिलेंगे ……..बाकि सब तो गप , गुटबाजी अपने अहंका
र के मद में चूर रहते है ………वे दुनिया को यह दिखाना चाहते है की उनके पास ये है वो है ……….पर उनके पास वास्तव में होता कुछ भी नहीं है ……….जो खली बर्तन होते हैं वो ज्यादा आवाज करते हैं ………….जिस पेड़ पर फल लगते हैं वह पेड़ झुक जाता है ……..इसी तरह जिनके पास वास्तविक ज्ञान होता है वे सब जगह यह ढोल नहीं पिटते की मेरे पास यह ज्ञान है मेरे पास वह ज्ञान है …………..
हमेशा हमारे गुरुभाई बोलते है की साधना तो
की लेकिन प्रक्तिसयकरण नहीं होता | क्या हमने कभी ये जानने की कोशिश की प्रक्तिसयकरण क्यों नहीं हुआ …… ??? कभी कोशिश ही नहीं की….इसका सीधा से अर्थ है … हमारे अंदर कुछ कमी है.. जो हमे समझ नहीं आती ..लेकिन सदगुरु तो हमारे साथ हमेशा है.. मार्गदर्शन किए लिए कोई ना कोई ऐसा व्यक्ति हमारे लिए भेज देते है | लेकिन हमे समझ नहीं आता |
अभी तक मैंने भी कई साधना की है ..जैसे की कर्णपिसचनि, भैरव साधना और कही बहुत सी ..९९ % सफलता मिलती थी | उसेस कई लाभ भी मिले जो यहाँ में पोस्ट करना उचित नहीं समझाता हु | लेकिन मुझे १% समझ नहीं | आ रहा था की ..की में गलती करता कहा हु ..लेकिन मुझे इतने सालो बाद मालूम पड़ा.. जो संतोष भाई जी मुझे कुछ बुक के बारे मैंन बतया . … और मैंने बस उसके कोई एक मंत्र परखने के लिए उसे इस्तमाल किया…और उ
सका जबरदस्त अनुभब भी हुआ ..
अगर हम सही अर्थो में देखें तो हमने अभी साधना के मार्ग में ,तंत्र के मार्ग में अपना पहला कदम रखा है …….क्योंकि तंत्र का क्षेत्र बहुत व्यापक है ,यह एक समुन्द्र की तरह है …………अगर आप तंत्र की बात करते है तो तंत्र का वास्तविक प्रारंभ श्यामा साधना के बाद ही होता है जिसमे साधक एवं साधिका को पुर्णतः निर्वस्त्र होकर एक दुसरे के सामने बैठते हुए तिन दिन तक मंत्र जप करना पड़ता है …….इस श्यामा साधना में यह देखा जाता है की क्या आप सही अर्थो में अपने अन्दर के काम भावनाओं को नियंत्रित करने में सक्षम हुए हैं या नहीं …………..इस टेस्ट को पास करने के बाद ही साधक व साधिका वास्तविक अर्थो तंत्र के क्षेत्र में प्रवेश करने के अधिकारी होते है ,जिसके बाद ही उनके सामने तंत्र के गूढ़ रहस्य खोले जाते हैं …………
अतः आप स्वयं सोच ले की हम अभी किस लेवल पे खड़े हैं ………अभी तो हमने अपना सिर्फ पहला कदम ही बढाया है , मंजिल तो अभी काफी दूर है …………अगर आपको तंत्र के क्षेत्र में , साधना के क्षेत्र में उचाईयों को छूना है तो आपको शव साधना , श्यामा साधना ,श्मशान साधना आदि तो करनी ही पड़ेगी ………पर प्रश्न यह उठता है की क्या हम वास्तव में इन साधनों को करने के लिए तयार है?????????????? क्या हम में इतनी क्षमता है की हम इन साधनाओं को कर के इनमे सफलता प्राप्त कर सके ????????आप अभी एक भूत को प्रकट नहीं
कर पाते हैं तो श्मशान साधना क्या करेंगे ???????????
अतः मित्रो हमें पहले साधक बनने की जरुरत है ……..हमें अभी साधना के क्षेत्र में अपनी बेस बनाने की जरुरत है …….क्योंकि अगर आपको बहुमंजिला इमारत बनानी है तो आपको यह ध्यान रखना पड़ेगा की वह इमारत का निर्माण जिस खम्बे पे हो रहा है वह इतना मजबूत होना चाहिए की वह उस इमारत के वजन को सह सके ………
इसी तरह अगर हमें तंत्र के क्षेत्र में साधना के क्षेत्र में अदुतिय बनना है तो सबसे पहले हमें अपनी बेस मजबूत करनी पड़ेगी ………….और यह बेस सद्गुरु साधना के माध्यम से ,शिव साधना के माध्यम से ही संभव है ……….क्योंकि बिना अपने अन्दर गुरुत्व स्थापित किये ,बिना अपने अन्दर शिवत्व स्थापित किये आप साधनाओं में उच्चता प्राप्त कर ही नहीं सकते ………….
अगर आप को अपने सदगुरुदेव में विश्वास है है … तो में आपको चैलेंज करता हु की .. अपने साधना की और साधना सिद्ध होगी हि… इसके लिए आपको सिर्फ बेस
मालूम होना चाहिए … सिर्फ मुझे अभी तक सिर्फ ३ साधक ही ऐसे मिले है .. जिन्होंने बिना पैसे के ..बिना स्वार्थ के …साधना मार्ग में मदत ही की.. ऐसे साधको मेरा दिल से नमन

मेरा आप को यह सब कहने के पीछे उद्देश्य मात्र इतना ही है की जब मैं अपने प्यारे भाइयो को देखता हूँ की वे व्यर्थ में इधर उधर भटक रहे हैं तो मेरे हृदय में एक दर्द सा होता है …………..जब हमें इतनी चेतना मिली है की यह देव दुर्लभ मानव जीवन हमें बड़े सौभाग्य से मिला है ……….जब हमें यह चेतना मिली है की हम अपने जीवन को सिर्फ साधनाओं के माध्यम से ही ऊँचा उठा सकते हैं ………………अतः इतनी चेतना होने के बाद भी अगर हम इस जीवन को ऐसे ही भटकते हुए व्यतीत कर दे तो हमसे बड़ा दुर्भाग्यशाली इस पुरे संसार में कोई नहीं होगा ……………………जय निखिलेश्वर..
सदगुरुदेव के निखिलेश्वरनंदजी के पावन चरणकमलों में आदेश आदेश !!!
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