आध्यत्म की सार्थकता -- तृतीय भाग

                

मित्रो, प्रथम बार मैंने शिव को ही अपना गुरु माना था और उनसे यही प्रार्थना की थी की मुझे जीवन में सद्गुरु रूप में आप प्राप्त हो ...........

और ये शिव की कृपा ही है की प्रथम बार जिनके प्रति मेरा मस्तक पूर्ण रूप से श्रद्धा से झुका था,प्रथम बार मेरे दिल से ये आवाज आई की , तुम जिसे वर्षो से ढूंड रहे हो, वे सदगुरुदेव निखिलेश्वरानंद ही है .......... और तब से लेकर आज तक मैं उनको शिव मानते हुए उनकी सद्गुरु रूप में पूजा कर रहा हूँ ..........

गतांक से आगे……..

जब भी कोई भटका हुआ व्यकती अध्यत्मिक ज्ञान की खोज में निकलता है तो हर व्यक्ति से मिलता है...गुरु की खोज में॥जिससे गुरु उसे ज्ञान दे सके ओर अपने लक्ष्य की ओर बढ सके , वैसे ही में भी ना जाने कितने व्यक्तियो ,सिद्धों ,ओर संतो से मिला | लेकिन मुझे कोई ऐसा नहीं मिला जो मेरी प्यास बुझा सके... | लेकिन मेरे जीवन में भी एक ऐसा दिन आया जब मुझे तंत्र सिदधि नमक पुस्तक अगस्त 1998 में मिली...सद्गुरुदेव के चित्र को देख के दिल में से आवाज आई आज मुझे मेरे गुरु मिलने वाले है , लेकिन जब गुरुधाम में फोन किया तो पता चला की सद्गुरुदेव ने देह त्याग दिया॥ मेरे अखो से असू निकल पड़े ... :(

तो मित्रो , अगर सही मायने आप लोग इस मार्ग में आगे बढ़ने चाहते है , सच में अगर आपकी अंतरात्मा बोलती है की मुझे आध्यात्म मार्ग में सफल होना ही है। ....

तो आपको गुरु मंत्र की साधना करना ही होगा।
क्रमश :

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