आध्यत्म की सार्थकता _ पंचम भाग

गतांक से आगे। 

       -----  त्वदीयं वस्तु निखिलं तुभ्यमेव समर्पये....----

आप लोगो में से कई ऐसे नए साधक है, जिनके मन में यह इच्छा है की वे सदगुरुदेव निखिलेश्वरानंद को अपना सद्गुरु बनाएं , इस विषय मे मैं आपसे यही कहना चाहता हूँ की अगर आपके मन में पूर्ण रूप से उनके प्रति समर्पण है ,उनके प्रति आपके हृदय में प्रेम है , अगर आपके दिल को यह लगता है की यही मेरे सद्गुरु है तो आप निश्चय ही उनको सद्गुरु मान कर उनकी पूजा कर सकते है ...............
लेकिन अगर आप के मन में उनके प्रति संशय है ,अगर आप के हृदय में उनके प्रति पूर्ण रूप से समर्पण नहीं है तो आप देखा देखि किसी को भी अपना गुरु नहीं बनाईये , नहीं तो इससे आपको कुछ भी प्राप्त नहीं होगा , भले ही सामने वाले को बहुत कुछ प्राप्त हो गया हो ...........

मित्रो अब प्रश्न यह उठता है की कैसे किसी के प्रति आप समर्पित हो?????????कैसे आपका शीष श्रद्धा से किसी के आगे झुके ????????कैसे आपके हृदय में किसी के लिए बेइंतहा मोहब्बत हो ?????????
मित्रो इस विषय में बस यही कहना चाहूँगा की , पहली नज़र में कोई आपको अच्छा तो लग सकता है पर आप उससे प्रेम नहीं कर सकते ...............किसी को देख कर आप आकर्षित तो हो सकते है पर समर्पित नहीं हो सकते ...........

समर्पण तो उसको जान के ही किया जा सकता है, इसीलिए एक कहावत है

" बिन जाने होई न प्रीति ".............

जब तक सद्गुरु के बारे में आप जानोगे नहीं तब तक आपको उनसे प्रीति नहीं हो सकती, उनसे प्रेम नहीं हो सकता ..........

अगर आप सदगुरुदेव निखिलेश्वरानंद के बारे में जानना चाहते है, तो आप यह जानने की कोशिश कीजिये की उन्होंने अपने जीवन काल में कौन कौन सी लीलाएं की ..............
इसके लिए आप उनकी निचे वर्णित कुछ पुस्तको के नाम बता रहा  हु | जिससे  आप गुरुधाम से माँगा सकते है |

सिद्धाश्रम का योगी, हिमालय की गुप्त सिध्दियां और शमशान भैरवी। .......

और अब  अंत  में.........

प्रियो मित्रो ,

में ये पोस्ट लिखना नह्नि चाहता था | मेरी पोस्ट पे उस दिन जब इतना विवाद हुआ की में खुद बहुत परेशान हुआ |  उस विवाद ने मेरी अंतरात्मा को झकझोर कर दिया था |  लेकिन बाद में पता चला |  ये सब महाकाल की लीला थी|  जिसने कुछ और गुप्त रहस्य का अनावरण कर दिया :)  और आज  में बहुत खुश हु |
मेरे पिता ने कभी मुझे छोड़ा ही नहीं वो तो  हमेशा मेरे साथ ही। ...... मेरे निखिल बाबा | मेरा बाबा | मेरे महाकाल |  मेरे शिवा |

परमतत्व एक ऐसा तत्व है | उसके पाने के लिए जनमोजन्मान्तर निकल जाते है |  तो मित्रो शिवा ही जिसे इसे ही धारण किया है |  उस तत्व को धारण करने की क्षमता हमे नहीं है |  हमे उसके लिए कई जनम लेने पड़ेगे |  ये जो लिखा ये शयद आपके समाज से परे हो सकता है |  जिसके लिए लिखा वो समझ जायेगा |

मित्रो ,

आजकल में देखता हु | कई लड़के इस मार्ग में जुड़ने तो चाहते है | लेकिन अपने स्वार्थ के लिए। ....  जैसे की अपनी भौतिक समस्या के लिए | किसी कोई अप्सरा चाइये |  वो भी एकदम तत्काल | सिर्फ मंत्र पड़ा और अप्सरा हाजिर |  क्या ऐसा हो सकता है क्या???????????????????????? बिलकुल नहीं भाई
भूल जाओ भाईश्री। .........  जब मेरे महकाल थे | वो अपने शिष्यों से सिर्फ गुरुमंत्र की माला १ दिन में  ५००  करवाते थे मतलब १२ घंटे के ऊपर। ......  वो भी कही महीने। ........  क्या आप कर सकते  हो                                                    इसका उत्तर डिजियगा कमेंट में.....

अगर आपका उत्तर नहीं है तो ये मार्ग आपके लिए नहीं है मित्र. ....  अगर आपको सिद्धिया चाइये तो  १५ हजार में सिद्धि मिल रही है |  अनुभूति के साथ

हद है यार कैसा जमाना आ गया। .....  पहले लोग इंसान को बेचते थे अब सिद्दिया बेच रहे। ...... फेसबुक बाबा की जय हो  लगो रहो मुन्ना भाई। .......   मित्रो आपको ये ,मजाक लग
रहा होगा लेकिन सत्य तो यही है|

अगर सही अर्थो में आपको इस मार्ग में बढ़ना है |  तो मेहनत तो आपको ही करनी ही पड़ेगी। .....  और फल भी मिलेगा वो आपको ही मिलिएगा |  सिर्फ महाकाल
के कुछ ही साधक है फेसबुक पर। ......  आप उनसे मदत मांग सकते है |  बिना पैसे के। ..... बस आप में उनके प्रति समपर्ण  किये.... और सिद्धि  ही करनी है तो में एहि मानता हूँ

                "साधनां साधयति वा शरीरं पातयति

    या तो साधना सिद्ध करूँगा या तपश्चर्या से शरीर नष्ट कर दूँगा||"

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